गुलजार की हसीना नज्में पेश हैं...
By: Team Aapkisaheli | Posted: 17 Aug, 2017
सांस लेना भी कैसी आदत है जीये जाना भी क्या रवायत
है कोई आइट नहीं बदन में कहीं कोई साया नहीं है आंखों में पांव बेहिस हैं,
चलते जाते हैं इक सफर है जो बहता रहता है कितने बरसों से, कितनी सदियों से
जिये जाते हैं, जिये जाते हैं... अदतें भी अजीब होती हैं
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