गंगाजल के बैक्टीरियोफाज दिलाएंगे कोरोना से मुक्ति
By: Team Aapkisaheli | Posted: 14 Sep, 2020
वाराणसी। कोरोना से मुक्ति दिलाने में गंगाजल का अहम योगदान हो सकता है।
गंगाजल के बैक्टियोफॉज से कोरोना के नाश होने का दावा बनारस हिंदु
विश्वविद्यालय (बीएचयू) के मेडिकल साइंस की ओर से किया जा रहा है।
बीएचयू
के न्यूरोलॉजी विभाग के प्रोफेसर डॉ़ विजय नाथ (वीएन) मिश्रा ने आईएएनएस
को बताया कि 1896 में जब कालरा महामारी आयी थी तब डा़ॅ. हैकिंन ने एक
रिसर्च किया था जिसमें उन्होंने कहा था कि जो गंगाजल का सेवन करते हैं,
उन्हें कालरा नहीं हो रहा है। वह रिसर्च काफी दिनों तक पड़ा रहा। फिर करीब
1940 में एक खोज हुई तो पता चला कि गंगाजल में एक ऐसा बैक्टीरिया पाया जाता
है जो वायरस को नष्ट कर देता है। उसका नाम बैक्टीरियोफेज (फाज) भी कहते
हैं।
उन्होंने बताया कि गंगा में वायरस से लड़ने के लिए बैक्टीरिया
मिल रहे हैं। 1980 में यह पता चला कि बैक्टीरियोफेज सभी नदियों में मिलते
हैं लेकिन गंगा में 1300 प्रकार के मिलते हैं। यमुना में 130 प्रकार के
मिलते हैं। नर्मदा में 120 प्रकार के मिलते हैं। यह फेज गंगा जी के पानी
में ज्यादा पाए जाते हैं। इसके निहितार्थ दो देशों ने जार्जिया और रूस ने
समझा है। जार्जिया में कोई एंटीबायोटिक नहीं खाता है। वहां पर फेज पिलाकर
इलाज किया जाता है। वहां प्रयोगशालाएं भी हैं। जहां पर एंटीबायोटिक का असर
करना बंद हो जाता है वहां फेज या फाज से इलाज किया जाता है।
बीएचयू
में 1980-90 के बीच जले हुए मरीजों को फाज के माध्यम प्रो़ गोपालनाथ ने
इलाज किया। काफी मरीजों को ठीक किया। जब कोरोना आया तो डॉ़ बोर्सिकि ने
बताया कि इनके विरूद्घ कोई लिविंग वायरस प्रयोग कर सकते हैं। जिस प्रकार
टीबी के लिए बीसीजी का कर रहे हैं। बीसीजी में कोई दवा नहीं होती है। इसमें
लाइव बैक्टीरिया होता है। इससे कोई नुकसान नहीं होता है। इससे टीबी खत्म
होता है।
इसके लिए गंगा मामलों के एक्सपर्ट और इलाहाबाद हाई कोर्ट
के एमिकस क्यूरी एडवोकेट अरुण गुप्ता ने अप्रैल में राष्ट्रपति को पत्र
लिखा था। उसमें कहा था कि गंगाजल के औषधीय गुणों और बैक्टीरियोफाज का पता
लगाया जाना चाहिए। लेकिन 10 मई को आईसीएमआर ने इसे यह कह कर रिजेक्ट कर
दिया कि इसकी कोई क्लीनिकल स्टडी नहीं कि हम गंगा के पानी से कोई इलाज किया
जा सके। फिर हम लोगों ने एक ग्रुप बनाया फिर रिसर्च शुरू किया। 112 जर्नल
निकाले। हम लोगों ने एक रिसर्च की सोच दी। बैक्टीरियाफा की स्टडी की। इसका
वायरोफाज नाम दिया।
गुप्ता ने कहा कि हमने इंटरनेशनल माइक्रोबायलॉजी
के आगामी अंक में जगह मिलेगी। हम लोग फाजबैक्टीरिया के माध्यम से कोरोना
संक्रमण को दो विधियों से इलाज किया जा सकते हैं। यह वायरस नाक में अटैक
करते हैं। गंगोत्री से 20 किलोमीटर नीचे गंगाजल लिया। टेस्ट किया वहां फेज
की गुणवत्ता अच्छी है। इसका नोजस्प्रे बना दिया है। इसका क्लीनिकल ट्रायल
होना है। बीएचयू की एथिकल कमेटी से पास होंने पर इसका ट्रायल होना है। अभी
केमिकल स्टडी की परिमिशन नहीं मिली। लेकिन प्रति ने इसका ट्रायल किया है।
इसके लिए हमने एक सर्वे भी किया है। गंगा किनारे 50 मीटर रहने वाले 490
लोगों को शामिल किया है। जिसमें 274 ऐसे लोग है जो रोज गंगा नहाते पीते है।
उनमें किसी को कोरोना नहीं है। इसमें 90 वर्ष के लोग शामिल हैं। 217 लोग
भी इसी दायरे में रहते हैं। वह गंगाजल का इस्तेमाल नहीं करते। उनमें 20
लोगों को कोरोना हो गया है। जिसमें 2 की मौत हो गयी है। यह एक संकेत है।
एथिकल कमेटी हमको परिमिशन देगी तो ट्रायल शुरू हो जाएगा। बैक्टीरियोफाज
स्प्रे बन गया है। जिससे कोरोना का मुकबला किया जा सकता है।
गंगा
मामलों के एक्सपर्ट और इलाहाबाद हाई कोर्ट के एमिकस क्यूरी एडवोकेट अरुण
गुप्ता ने बताया कि गंगाजल में हजारों प्रकार के बैक्टीरियोफाज पाए जाते
हैं। फाज का एक गुण होता है। यह शरीर में प्रवेश करने पर यह सभी प्रकार के
वायरस को मार देता है। लॉकडाउन के बाद इसके रिसर्च में लग गया। तो पता चला
कि फाज वायरस के अलावा श्वसन तंत्र वायरस को नष्ट कर सकता है। इस स्टडी को
राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को भेजा। इसे राष्ट्रपति ने आईसीएमआर को भेज
दिया। लेकिन इस पर आईसीएमआर ने रिसर्च करने से मना कर दिया। बीएचयू की टीम
से संपर्क किया। करीब 5 डाक्टरों की टीम बनाकर क्लीकल ट्रायल शुरू किया है।
पाया गया है यह फाज कोरोना को नष्ट कर सकता है। (आईएएनएस)
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