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गर्भनिरोधक अपनाने में कैसी हिचक

By: Team Aapkisaheli | Posted: 16 Oct, 2017

गर्भनिरोधक अपनाने में कैसी हिचक
आज भारतीय दंपती गर्भनिरोधक उपायों का कितना इस्तेमाल करते हैंक् भारतीय युवा दंपती, चाहे सिंगल इनकम परिवार से हों या डबल इनकम परिवार से, गर्भनिरोधकों के इस्तेमाल को लेकर उनकी सोच पूरी तरह उलझी रहती है। ये युवा दंपती कपडे बेशक अंतरराष्ट्रीय ब्रांड के पहन लें लेकिन गर्भनिरोध के सुरक्षित और बेहतरीन तरीकों को अपनाने व उन के बारे में बात करने में शर्म महसूस करते हैं। अधिकतर दंपत्तियों की गर्भनिरोधकों से जुडी जानकारी सीमित रहती है और कई बार गलत भी होती है। स्त्री नसबंदी (ट्यूबेक्टोमी)
इस प्रक्रिया में स्त्री की डिंब नलिकाओं को काट कर बांध दिया जाता है जिससे अंडाणु नलिका से आगे की ओर नहीं आ पाता। इस ऑपरेशन से स्त्रीत्व पर कोई प्रभाव नहीं पडता।
कंडोम
यह वह तरीका है जिसके द्वारा पुरूष गर्भनिरोध में योगदान करता है। कंडोम को यदि पुरूष अपने अंग पर सही ढंग से प्रयोग में नहीं लाते तो यह गर्भ रोकने में असफल भी हो सकता है। कंडोम का फेलियर रेट 12 प्रतिशत होता है जिसका कारण कंडोम में वायु के रह जाने से उसका फट जाना या गरमी के कारण उसमें छेद हो जाना है।
जैली
यह एक प्रकार की रासायनिक क्रीम होती है जो पुरूष शुक्राणुओं को महिला की योनि में प्रविष्ट करने से पहले ही मार देती है तथा उन्हें गर्भाशय तक नहीं पहुंचने देती। महिलाओं के लिए गर्भनिरोधक के रूप में मिलने वाली गोली जो योनि में रखी जाती है, आजकल उसे "टुडे" के नाम से जाना जाता है। नवविवाहितों को अगर गर्भधारण से बचना हो तो कंडोम व जैलीे का मिलाजुला उपभोग बेहतरीन गर्भनिरोधक की तरह कार्य करता है और इसका फेलियर रेट मात्र 3 प्रतिशत होता है।
डायफ्राम
डायफ्राम महिला की योनि में रखने पर बच्चोदानी के मुंह को ढककर शुक्राणु का उसमें प्रवेश रोकता है। इसे प्रयोग करने से पहले महिला की योनि में प्रविष्ट किया जाता है और संभोग करने के पश्चात इसे 6 से 8 घंटे तक अवश्य लगाए रहना चाहिए, यह शुक्राणुओं को गर्भाशय में जाने से रोकता है। चूंकि महिलाओं का शारीरिक आकार अलग-अलग होता है, इसलिए मामूली जांच की आवश्यकता होती है। डायफ्राम 3 साइज में उपलब्ध होता है-स्माल, मीडियम और लार्ज। इसका ढीला होना ही इसकी असफलता का कारण बनता है।
कॉपर टी महिलाएं
गलतफहमी का शिकार होती हैं कि कॉपर टी ऊपर चढ जाती है। यह पूर्णतया गलत धारणा है। कॉपर टी लगाने से पहले अपनी जांच स्त्री रोग विशेषज्ञ से कराएं और उसकी सलाह अनुसार ही चलें। इस समय बाजार में कई प्रकार की कॉपर टी उपलब्ध हैं।
200-बी : यह सरकारी अस्पतालों में मुफ्त लगाई जाती है तथा इसकी अवधि 3 वर्षो के लिए होती है।
380-ए : इसकी अवधि 10 वर्षो के लिए होती है।
मल्टीलोड : इसकी अवधि 5 वर्षो के लिए होती है। यह विदेशी होती है।
सिल्वर लिली : इसकी अवधि 7 वर्षो के लिए होती है।
कापर-7 : इस गर्भनिरोधक की अवधि भी 7 वर्षो के लिए होती है।
गर्भनिरोधी टीके
अब भारतीय बाजारों में भी 2 प्रकार के गर्भनिरोधी टीके मिलते हैं। डी.एम.पी.ए. (डेपोमेडरमोक्सी प्रोजेस्टरोन एसिटेट) : इस गर्भनिरोधक टीके को स्त्री के कूल्हे पर लगाया जाता है तथा इसकी सफलता दर 99 प्रतिशत है। यह टीका हर 3 महीने पर लगाया जाता है। डाक्टरों का मानना है कि यह बेहद प्रभावशाली व सुरक्षित है।
नारप्लांट : यह गर्भनिरोधक टीका बाजार व बडे अस्पतालों में उपलब्ध होता है। इसमें 6 सिलास्टिक स्टिक्स में हारमोंस होते हैं जो सबक्यूटेनियस ट्रेकर एंड कैनुला से स्त्री की बाई बाह के ऊपरी भाग, त्वचा के नीचे इंजेक्ट कर दिए जाते हैं। हारमोंस की दवा हल्के-हल्के शरीर में जाती रहती है।
गर्भनिरोधक गोलियां
गर्भनिरोधक गोली का इतिहास 40 साल पुराना है लेकिन आज भी गर्भनिरोधक गोली को हौव्वा समझा जाता है। गर्भनिरोधक गोली 21 दिन तक रोजाना एक ली जाती है जिसके बाद 7 दिन के लिए इसे रोक दिया जाता है, जिस दौरान मासिक धर्म का स्त्राव होता है। अमेरिका में हुए एक अध्ययन के अनुसार गर्भनिरोधक गोली स्त्री को गर्भाशय की अंदरूनी परत और ओवरीज के कैंसर से बचाती है और यह बचाव गोलियों का सेवन छोडने के बाद तक जारी रहता है। भारत में डाक्टरों द्वारा दिए जाने वाले आंकडों के अनुसार 29 प्रतिशत महिलाओं को गर्भनिरोधक गोलियों के सेवन के निर्देश दिए जाते हैं लेकिन केवल 2 प्रतिशत महिलाएं, जो गर्भधारण करने की आयु सीमा में आती हैं, ओरल कंट्रासेप्टिव्स का इस्तेमाल करती हैं। आज की सभी आधुनिक गर्भनिरोधक गोलियां "लो डोज" वेरायटी की होती हैं जिनमें हारमोेन की मात्रा कम से कम रखी जाती है जिससे विश्वसनीयता, सुरक्षा और मासिक धर्म चक्र पर नियंत्रण रह सके। गोलियां खाते हुए गर्भ तभी ठहरता है जब महिला गोली एक या एक से अधिक बार खाना भूल जाती है या फिर सही समय पर उनका सेवन नहीं करती।
नोन स्कैल्पल वेसेक्टोमी
पुरूष नसबंदी की यह नई विधि है। यह अंडकोश में एक या 2 चीरे लगाने के बजाय एक छोटा सा छिद्र कर के की जाती है। इसमें कोई टांका नहीं लगाया जाता। इस प्रकार दर्द कम होता है। इसमें ऑपरेशन के समय की बचत होती है। इसमें किसी भी प्रकार से यौन प्रक्रिया अथवा स्खलन पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पडता। संभोग के समय स्खलन के लिए पहले की तरह पर्याप्त वीर्य निकलता है परन्तु शुक्राणुरहित।
स्त्री रोग विशेषज्ञ के अनुसार सबसे दुख की बात यह है कि इतने गर्भनिरोधक साधन होने के बावजूद गर्भपात को ही गर्भ निरोधक की तरह इस्तेमाल किया जाता है। महिलाएं गोलियां खाना भूल जाती हैं। कंडोम पति पसंद नहीं करते। अन्य तरीकों को लेकर महिलाओं में इतना डर है कि वे गर्भपात को गर्भनिरोधक की तरह इस्तेमाल करने से कतई नहीं डरतीं। एबार्शन को गर्भनिरोधक की तरह इस्तेमाल करने वाली महिलाएं यह भी याद नहीं रख पाती कि वे कितने गर्भपात, कब-कब करा चुकी हैं।
यहां तक कि 40 दिन के शिशु की मां भी गर्भपात के लिए आती देखी जाती है। शिशु जन्म के बाद महिलाएं कुछ समय के लिए गर्भनिरोधक उपायों के प्रति लापरवाह हो जाती हैं। यह भ्रांति भी है कि शिशु को स्तनपान कराते रहने से गर्भधारण नहीं होता। शिशु को जन्म देने के बाद ही 2-3 महीने के अंतराल में अगर स्त्री गर्भपात का रास्ता अपनाती है तो वह और खतरनाक होता है क्योंकि गर्भाशय कमजोर होने के कारण फट सकता है और उसे पूर्णतया हटाने की नौबत आ सकती है। अत: गर्भनिरोधकों से शरमाएं नहीं, उन्हें अपनाएं।

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