पेट के रोगों से हैं परेशान तो शनिदोषों को करें ऐसे दूर, होगा पक्का फायदा..
By: Team Aapkisaheli | Posted: 22 May, 2018
ज्योतिष के अनुसार रोग विशेष की उत्पत्ति जातक के जन्म समय में किसी
राशि एवं नक्षत्र विशेष पर पापग्रहों की उपस्थिति, उन पर पाप
दृष्टि,पापग्रहों की राशि एवं नक्षत्र में उपस्थित होना, पापग्रह अधिष्ठित
राशि के स्वामी द्वारा युति या दृष्टि रोग की संभावना को बताती है। इन
रोगकारक ग्रहों की दशा एवं दशाकाल में प्रतिकूल गोचर रहने पर रोग की
उत्पत्ति होती है।
प्रत्येक ग्रह, नक्षत्र, राशि एवं भाव
मानव शरीर के भिन्न-भिन्न अंगो का प्रतिनिधित्व करते है।
जानिए ज्योतिषीय कारण उदर रोग के
उदर विकार उत्पत्र करने में भी शनि एक महत्वपूर्ण भुमिका निभाता हैं। सूर्य
एवं चन्द्र को बदहजमी का कारक मानते हैं, जब सूर्य या चंद्र पर शनि का
प्रभाव हो, चंद्र व बृहस्पति को यकृत का कारक भी माना जाता है। इस पर शनि
का प्रभाव यकृत को कमजोर एवं निष्क्रिय प्रभावी बनाता हैं। बुध पर शनि के
दुष्प्रभाव से आंतों में खराबी उत्पत्र होती हैं। वर्तमान में एक कष्ट कारक
रोग एपेण्डीसाइटिस भी बृहस्पति पर शनि के अशुभ प्रभाव से देखा गया है।
शुक्र को धातु एवं गुप्तांगों का प्रतिनिधि माना जाता हैं। जब शुक्र शनि
द्वारा पीडि़त हो तो जातक को धातु सम्बंधी कष्ट होता है। जब शुक्र पेट का
कारक होकर स्थित होगा तो पेट की धातुओं का क्षय शनि के प्रभाव से होगा।
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पत्नी को नींद न आए,नींद पूरी न हो तो समझोशनिकृत कुछ विशेष उदर रोग योगकर्क, वृश्चिक, कुंभ नवांश में शनिचंद्र से योग करें तो यकृत विकार के कारण पेट में गुल्म रोग होता है।
द्वितीय भाव
में शनि होने पर संग्रहणी रोग होता हैं। इस रोग में उदरस्थ वायु के
अनियंत्रित होने से भोजन बिना पचे ही शरीर से बाहर मल के रुप में निकल जाता
हैं।
सप्तम में शनि मंगल से युति करे एवं लग्रस्थ राहू बुध पर दृष्टि करे तब अतिसार रोग होता है।
मीन या मेष लग्र में शनि तृतीय स्थान में उदर में दर्द होता है।
सिंह
राशि में शनि चंद्र की यूति या षष्ठ या द्वादश स्थान में शनि मंगल से युति
करे या अष्टम में शनि व लग्र में चंद्र हो या मकर या कुंभ लग्रस्थ शनि पर
पापग्रहों की दृष्टि उदर रोग कारक है।
कुंभ लग्र में शनि चंद्र के साथ युति करे या षष्ठेश एवं चंद्र
लग्रेश पर शनि का प्रभाव या पंचम स्थान में शनि की चंद्र से युति प्लीहा
रोग कारक है।
हर राशि का होता है स्वामी मेष राशि सिर
में, वृष मुंह में , मिथुन छाती में, कर्क ह्नदय में, सिंह पेट में, कन्या
कमर में, तुला बस्ति में अर्थात पेडू में, वृश्च्कि लिंग में , धनु जांघो
में, मकर घुटनों में, कुंभ पिंडली में तथा मीन राशि को पैरो में स्थान दिया
गया है। राशियों के अनुसार ही नक्षत्रों को उन अंगो में स्थापित करने से
कल्पिम मानव शरीराकृति बनती है।
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