घुटनों की सर्जरी से जुड़े मिथक को तोडऩे की जरूरत : चिकित्सक
By: Team Aapkisaheli | Posted: 11 Jun, 2019
नई दिल्ली। नी आर्थराइटिस कोई बीमारी नहीं है, बल्कि जोड़ों में सूजन, उनके घिसने की समस्या है। कई सारे आर्थराइटिस मरीज मनोवैज्ञानिक ब्लॉक की वजह से पीड़ादायक और सीमित जिंदगी जीते हैं, जिसकी वजह से वह सर्जरी के विकल्प को अपनाने से बचते रहते हैं। इसलियेए घुटनों की सर्जरी से जुड़े मिथकों को तोडऩे की जरूरत है।
ऐसा अनुमान है कि लगभग 4.5 से 5 करोड़ लोग आर्थराइटिस की समस्या से जूझ रहे हैं, लेकिन उनमें से लगभग 5 लाख लोगों को जीवन में कभी न कभी घुटनों की सर्जरी या फिर टोटल नी रिप्लेसमेंट (टीकेआर) की जरूरत होती है।
नोएडा के कैलाश हॉस्पिटल के सीनियर आथोर्पेडिक सर्जन तथा आर्थराइटिस फाउंडेशन ऑफ इंडिया के चेयरमैनए डॉ. सुशील शर्मा के अनुसार, भारत में वर्तमान में हर साल 1,20,000 नी रिप्लेसमेंट किए जाते हैं। घुटनों की सर्जरी से जुड़े मिथक पर डॉ. शर्मा यहां पेश कर रहे हैं जानकारी :
सर्जरी के लिए उम्र कोई बाध्यता है इस पर उन्होंने कहा कि इसमें उम्र नहीं बल्कि चलना-फिरना मायने रखता है। रूमेटॉयड आर्थराइटिस के मरीज को बहुत ही कम उम्र में टीकेआर करवाने की जरूरत पड़ सकती है, जबकि ऑस्टियोआर्थराइटिस के मरीजों को इसे अधिक उम्र में लगभग 15 साल बाद करवाने की जरूरत पड़ती है।
यदि मरीज के घुटनों की मोबिलिटी वजह से चलना फिरना सीमित हो गया है और वह अपने दैनिक गतिविधियों को अच्छी तरह से नहीं कर पा रहे हैं, जैसे कि सीढियां चढऩा, सैर पर जाना, तो उन्हें टीकेआर करा लेना चाहिए।
यदि कोई मरीज एक किलोमीटर या 2 किलोमीटर भी नहीं चल सकता तो उसके एक्सरे में गंभीर क्षति/बदलाव नजर आता है, तो बेहतर है कि सर्जरी करा ली जाए।
वैज्ञानिक उन्नति होने से जॉइंट इम्प्लांट्स में काफी बदलाव आ गये हैं और ये 20 से 25 सालों तक चलते हैं। 55 साल से अधिक उम्र के लोग जो टीकेआर करवाते हैं उन्हें अपने जीवनकाल में शायद ही दूसरी सर्जरी करवाने की नौबत आती है।
नी सर्जरी के बाद लोग एक्सराइज कर सकते हैं, साइकिल चला सकते हैं और लंबी दूरी की वॉक कर सकते हैं।
(आईएएनएस)
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