क्या सचमुच लगती है नजर!
By: Team Aapkisaheli | Posted: 08 Nov, 2017
हम
सबकी कभी न कभी मुट्ठी भर नमक, तेल की बत्ती या डंडी वाली सूखी लाल मिर्च
से नानी-दादी या माँ ने नजर जरूर उतारी होगी। ट्रकों के पीछे "बुरी नजर
वाले तेरा मुँह काला" पढ़ने को मिल ही जाता है। तथाकथित मॉर्डन और
दकियानूसी बातों को न मानने वालों को भी ‘Touch wood’ कहते हुए सुना जा
सकता है।
तो सवाल यही उठता है कि क्या सचमुच लगती है नजर?
सबसे पहले नजर को परिभाषित करना जरूरी है। यद्यपि नजर की कोई स्पष्ट
परिभाषा तो नहीं है परंतु अनुभव के आधार पर कहा जा सकता है कि बुरी भावना
या ईष्र्या की भावना से यदि कोई हमें या हमारी किसी सुन्दर वस्तु को देखता
है तो स्वास्थ्य या उस वस्तु से संबंधित कष्ट होता है इसे ही नजर लगना कहते
हैं। नजर सम्मोहन का नकारात्मक स्वरूप है।
नजर कैसे लगती है इस पर चर्चा करने से पहले Aura(ऑरा) की चर्चा जरूरी है।
क्या है ऑरा? ऑरा, मनुष्य शरीर के अन्दर और बाहर की ओर 4-5 इंच के ऊर्जा
क्षेत्र को कहते हैं। यह ऊर्जा क्षेत्र शरीर की बनावट के समान होता है। यह
ऊर्जा क्षेत्र हमारे शरीर के सुरक्षा कवच के समान होता है। इसे Human
Energy Field भी कह सकते हैं। हमारी सोच और भावनाएँ इस सुरक्षा कवच को
govern करती हैं। कोई भी बीमारी हमारे शरीर में प्रवेश करने से पहले इस
Aura zone में आती है और यदि Aura कमजोर हो तो ही हमारे शरीर में प्रवेश कर
पाती है। यदि हमारी सोच नकारात्मक होगी तो यह सुरक्षा कवच कमजोर होगा और
हमें प्रतिकूल रूप से प्रभावित करेगा। इसी प्रकार यदि कोई नकारात्मक या
ईष्र्या से वशीभूत भावना इतनी बलवान हो कि वह इस सुरक्षा कवच को भेद दे तो
भी हमें प्रभावित कर सकती है। दूसरे शब्दों में यह भी कह सकते हैं कि ऊर्जा
क्षेत्र में जब विक्षोभ उत्पन्न होता है तब हम और हमारे कार्यकलाप
प्रतिकूल रूप से प्रभावित होते हैं।
क्या Aura ही प्रभामंडल है?
हमारे प्राचीन ग्रंथों में प्रभा मंडल का वर्णन मिलता है। क्या प्रभामंडल
और Aura एक ही हैं, संभवत: हाँ। हमारे कार्यो और विचारों की दृढ़ता के
साथ-साथ हमारा प्रभामंडल ब़डा और सुदृढ़ होता है। महापुरूषों के चारों ओर
जो चमकता प्रकाश या Halo होता है, वह उनका प्रभामंडल या Aura ही होता है,
जो अत्यंत सुदृढ़ होता है।
नजर और Aura : हम अपने मूल विषय नजर पर आते हैं। यह स्पष्ट है कि जब कोई
बुरी भावना हमारी Aura या प्रभामंडल में प्रवेश करती है तब हमें नजर लगती
है। जैसा कि हमने पहले कहा Auraऊर्जा क्षेत्र है और इसमें प्राण ऊर्जा होती
है, जब ऊर्जा का यह balanc या flow ग़डब़डाता है तब ऊर्जा की कमी के कारण
हम आलस्य महसूस करते हैं। जब ऎसी स्थिति ज्यादा लंबे समय तक होती है तब
परेशानियाँ और बढ़ती जाती हैं। इसे यूँ ही समझ सकते हैं कि नजर ऊर्जा
क्षेत्र में छिद्र कर देती है जिससे ऊर्जा का ह्रास होता है।
कौन लगाता है नजर?
भावनाओं का संप्रेषाण मनोवेगों से जु़डा है और कोई ना कोई विद्युत चुंबकीय
प्रभाव इसका वाहक होता है। वह जो भावनाओं का तीव्र संप्रेषण कर सकता है,
वही नजर लगा सकता है। एक संतानहीन माँ, एक भूखा मरता हुआ व्यक्ति, अर्थ
अभाव से ग्रस्त या हीन भावनाओं से ग्रस्त एक रिश्तेदार, उन सबको नजर लगा
सकता है जिनके पास यह वस्तुएँ आधिक्य में हों। निराशा के गहरे गर्त में
ईष्र्या से ग्रस्त व्यक्ति यह कार्य अच्छी तरह से संपादित कर सकते हैं।
किसको नहीं लगती नजर?
जिनका ऑरा या प्रभामंडल सशक्त होता है उन्हें नजर नहीं लगती। अपार जनसमूहों
को सम्मोहित करने वाले व्यक्तियों को भी नजर नहीं लगती, यद्यपि उन्हें
इसका पता ही नहीं होता। अटलबिहारी वाजपेयी का सभा में हाथ हिलाना या स्व.
श्रीमती इन्दिरा गाँधी का हाथ उठाकर जयहिन्द बोलना सारे भारत को सम्मोहित
कर जाता था। ऎसे उच्चकोटि के सम्मोहन बल से युक्त व्यक्तियों को नजर लगाना
संभव नहीं है।
मेरे गुरू पं. सतीश शर्मा ने दो अवसरों पर कर्ण पिशाचिनी सिद्ध किए लोगों
से अपनी जन्मतिथि जाननी चाही पर वे सही नहीं बता पाए। ऎसा संभवत: इसलिए हुआ
क्योंकि वे कर्ण पिशाचिनी साधक, उनके प्रभा-मण्डल को भेद नहीं पाए।
कैसे पहचानें कि नजर लगी है?
जब अचानक बच्चा अकारण ही रोने लगे, भूख का एहसास ना हो, खाना दिए जाने पर
ना खाए और आँखों में अजीब सा खालीपन दिखे और या फिर चेहरे पर ऎसे भाव हों
मानों वह सबसे अजनबी है और बाकी लोग भी उससे संबंधित नहीं हैं। युवा व
अधे़ड व्यक्ति चि़डचि़डाने लगे, आँखों में उनके भी अजनबीपन हो, बनते कार्य
बिग़डने लगें, स़डक पर सीधे चलते हुए अकारण विवाद होने लगे अथवा ट्रेफिक के
सभी नियमों का पालन करते हुए भी, हल्की गति में चलते हुए भी यदि वाहन टकरा
जाए तो मान लीजिए कि नजर लगी हुई है और नकारात्मक ऊर्जा व्यक्ति के
प्रभामंडल को प्रभावित कर रही है।
नजर उतारना: यह स्पष्ट है कि नजर उतारने का तात्पर्य ऊर्जा क्षेत्र के
नकारात्मक छिद्र को बंद करना है। दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि ऊर्जा के
अनुपात को पुन: स्थापित करना ही नजर उतारना है। नजर उतारने की प्रक्रिया
में जो भी वस्तु नजर उतारने में प्रयुक्त होती है, उसे शरीर से 3-4 इंच दूर
ऊपर से नीचे फिराया जाता है अर्थात् Aura के क्षेत्र में। स्पष्ट है कि
नजर उतारना ऑरा या प्रभामंडल में आई कमजोरी को दूर करना है।
नजर उतारने की विविध प्रक्रियाएँ :
सम्मोहन: वैज्ञानिकों का एक ब़डा वर्ग यह मानता रहा है कि कुछ मनुष्य
न्यूट्रॉन उत्सर्जन करके या न्यूट्रॉन कणों की बौछार करके सम्मोहन कर सकते
हैं। इसके लिए उच्चकोटि की यौगिक शक्तियां या आत्मबल चाहिए। विश्वभर में
ऎसा वर्ग भी उपलब्ध है जो सामान्य लौकिक प्रक्रियाओं के माध्यम से
प्रभामंडल को ठीक करते हैं।
झ़ाडा: भारत में झ़ाडा लगाने का बहुत प्रचलन है। पीलिया का झ़ाडा लगाने
वाला व्यक्ति कांसे के पात्र में सरसों का तेल लेकर हरी दूब से उसे घुमाता
हुआ बीमार व्यक्ति को उसमें झांकने के लिए कहता है। दरअसल इस प्रक्रिया में
प्रयोग में आने वाली वस्तुओं का स्वयं का प्रभामण्डल बहुत अधिक होता है।
ऑरा नापने के एक परीक्षण में पाया गया कि तुलसी की परिक्रमा करने के बाद
व्यक्ति के ऑरा क्षेत्र में 10-14 इंच का इÊााफा हुआ।
घरेलू उपचार: घर में नजर उतारने के लिए प्राय: नमक, लाल मिर्च, हींग,
नींबू, सरसों के तेल की बत्ती आदि का प्रयोग किया जाता है। इन सभी वस्तुओं
का ऑरा अधिक पाया गया है और इसलिए इन सभी वस्तुओं से इस प्रक्रिया को अच्छी
तरह से अंजाम दिया जा सकता है।
कैसे बचाएं खुद को नजर से?
ऑरा बढ़ाएं : नजर से खुद को बचाने के लिए सबसे महत्वपूर्ण है कि हम अपनी
ऑरा या प्रभामंडल को बढ़ाएं और मजबूत करें। इसके लिए सबसे महत्वपूर्ण है
सकारात्मक विचारधारा और अपने आसपास ऎसी चीजों का प्रयोग जिनका ऑरा अधिक हो,
जैसे तुलसी, आंवला, पीपल आदि। क्या यह आश्चर्यजनक नहीं है कि पूजा में
प्रयोग होने वाली सभी वस्तुओं का ऑरा बहुत अधिक होता है। इसी तरह हमारे
ग्रंथों में उन पे़डों को बहुत अधिक शुभ बताया गया है जिनका ऑरा अपेक्षाकृत
अधिक है। नमक को Aura cleaning का सर्वश्रेष्ठ माध्यम बताया गया है अत:
नहाने के पानी में साबुत नमक का प्रयोग बहुत सहायक सिद्ध होता है।
पारम्परिक उपाय : प्राय: नजर से बचने के लिए काला धागा पहनाने या काला टीका
या काजल लगाने की परंपरा रही है। स्पष्ट है कि काला रंग, नजर लगाने वाले
की एकाग्रता को भंग कर देता है। तिलक लगाने और मंगल-सूत्र पहनने, स्फटिक
बनाने के पीछे यही भावना है। अत: यह मात्र चिकित्सा ना होकर आधुनिक विज्ञान
और मनोविज्ञान के सम्मिलित प्रयोग की ऎसी पद्धति है जिसे कुछ लोग
अंधविश्वास समझ बैठते हैं। यद्यपि कुछ प्रतिशत ऎसे लोगों का हो सकता है जो
अऩाडी हैं और इस कार्य को करते हैं।
सारिका साहनी
एक्सपर्ट एस्ट्रोब्लेसिंग डॉट कॉम
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