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ऐसे अंगों वाली महिलाएं होती हैं सौभाग्‍यशाली, पुरूष ऐसे हों तो चमकेगी किस्‍मत

By: Team Aapkisaheli | Posted: 13 Oct, 2017

ऐसे अंगों वाली महिलाएं होती हैं सौभाग्‍यशाली, पुरूष ऐसे हों तो चमकेगी किस्‍मत
कई बार हम लोगों से बिना मिले, बिना देखे ही उनके बारे में धारणा बना लेते हैं, ये धारणाएं कभी सच साबित होती हैं, तो टूटती भी हैं। ऐसा क्या है जो हमें पूर्व में धारणा बनाने के लिए बाध्य करता है और बाद में उस पर टिके रहने के लिए भी। ये हैं हमारी शारीरिक चेष्टाएं और शारीरिक लक्षण। किसी व्यक्ति को देखने के साथ ही हमारे विचार बनने लगते हैं। चाहे वह अजनबी हो या चिर परिचित। हम कई लोगों के बारे में बिना उनसे बात किए या बिना उनकी बातों से सहमत या असहमत हुए भी धारणाएं बना लेते हैं। अधिकांशतया ये धारणाएं सत्य साबित होती हैं और हम सहजता से कह देते हैं कि मैं तो देखते ही पहचान गया था, लेकिन कई बार धारणाएं टूटती हैं, तब हमें आश्चर्य होता है कि मैं तो कुछ और समझ रहा था और यह व्यक्ति उससे हटकर निकला। ऐसा क्या है जो हमें पूर्व में धारणा बनाने के लिए बाध्य करता है और बाद में उस पर टिके रहने के लिए भी।

स्त्री जातक के अंग लक्षण
स्त्री जातक के संबंध में विवाह को लेकर विचार किया गया है। कई पुस्तकों में यह माना गया है कि जैसे लक्षण उत्तम पुरुषों में बताए गए हैं, वैसे ही लक्षण स्त्रियों में भी उत्तम हैं। विवाह के लिए चुनी जाने वाली स्त्री को लेकर अलग से कई ग्रंथों में बताया गया है। सुंदरता के लक्षण जहां कालिदास की नायिका से मिलते जुलते हैं। साथ ही कुछ सौभाग्यदायी लक्षणों को भी जोड़ा गया है। ऐसी स्त्री के शरीर पर बाल न्यून होने चाहिए, वह चलते समय पैरों से रेत न उड़ाए, आवाज धीमी व मधुर हो।
ये हैं पुरुष जातक के अंग लक्षण
पुरुष जातक के अंग लक्षण और शारीरिक चेष्टाओं के बारे में सामुद्रिक में विस्तार से दिया गया है। इसके अनुसार उत्तम पुरुष की मुखाकृति दृढ़ होती है, जबड़ा चौड़ा, ठुड्डी सुंदर उभार लिए हो पर होंठों से आगे निकली न हो, आंखें सीधी, तेज, गर्दन हल्की ऊपर उठी हुई, बाल करीने से जमे, पुष्ट ग्रीवा, होंठ सरल, रक्तिम, स्निग्ध और मृदु होने चाहिए, दांत पूरे बत्तीस सर्वश्रेष्ठ होते हैं, जीभ सामान्य लंबाई लिए हो और पतली, स्वच्छ, गुलाबी व सरल कोणिक होनी चाहिए। उनके हाथ घुटनों तक लंबे, छाती चौड़ी, पैर मजबूत और तलुवे चिकने होने चाहिए। ये अंग लक्षण सामान्य अंग लक्षण है। इनके अलावा शरीर के विभिन्न हिस्सों पर मस्से, तिल, दाग, चक्र, शंख, व्रण और रेखाओं के अनुसार भी फलादेश किए जाते हैं। मसलन केवल ललाट के आधार पर तीन प्रकार के पुरुष बताए गए हैं। उन्नत ललाट-सौभाग्य एवं धनवृद्धि का सूचक है। ऐसा मस्तक व्यक्ति को तेजस्वी तथा बुद्धिमान दर्शाता है। दबा हुआ ललाट-यदि किसी व्यक्ति का माथा मध्य में दबा हुआ हो, मस्तक उभरा हुआ तथा बाल छोटे हों तो वह बड़ा भाग्यवान होता है।
मोटे ललाट छोटे बाल-जिस व्यक्ति का सिर मोटा हो, मस्तक उभरा हुआ तथा बाल छोटे हों, वह भाग्यवान होता है। समाज में सम्मान पाता है। खल्वाट-यानी किसी व्यक्ति के सिर के अग्र भाग में बाल न हों और बालों की लहर पीछे की ओर हो, वह व्यक्ति धनवान, युक्तिशील, चतुर तथा प्रत्येक कार्य में सिद्धि पाने वाला होता है। इसी प्रकार लंबी नासिका जो अग्रभाग से छोटी हो, ऐसा व्यक्ति अहंकारी होता है। हर काम स्वार्थ एवं चतुराई से करता है। जिस व्यक्ति की नासिका आगे से बड़ी हो तथा नथुने कुछ खुले हो, वह धनवान, प्रतिष्ठा पाने वाला तथा स्त्री पक्ष की ओर से अधिक सुख भोगने वाला बताया गया है।
अंग लक्षणों में सुधार संभव जातक
अंग लक्षणों को साथ लेकर पैदा होता है। शरीर का नैसर्गिक विकास जैसा होना है, वैसा ही होगा, उनमें बदलाव नहीं किया जा सकता। कुछ हद तक प्लास्टिक सर्जरी या ऐसे ही उपचार कर सुधार कर भी लिया जाए, तो भी अधिकांश लक्षण ज्यों के त्यों ही रहते हैं। ऐसे में शारीरिक चेष्टाओं में सुधार कर व्यक्ति अपना भाग्य बदल सकता है। पतंजलि के हठ योग में शारीरिक चेष्टाओं को नियमित और संतुलित करने के लिए कई आसन और प्राणायाम की जानकारी दी गई है। इससे उत्तम पुरुष की चेष्टाओं को हासिल किया जा सकता है। खराब शारीरिक चेष्टाओं में झुककर बैठना, गर्दन झुकाकर खड़े होना, पैर घिसटते हुए चलना, बैठे हुए या बातचीत के दौरान अपने ही पांवों को पकड़े रखना, अधिकांशतया लेटी हुई या सहारे वाली अवस्था में रहना जैसी चेष्टाएं शामिल हैं। योग करने से इन चेष्टाओं में तेजी से सुधार होता है। अगर चेष्टाएं बहुत अधिक प्रभावी बना ली जाएं, तो लक्षणों के खराब प्रभाव को बहुत हद तक दूर किया जा सकता है।
शारीरिक चेष्टाएं पढ़ भी सकते हैं
हालांकि भारतीय सामुद्रिक शास्त्र में अंग लक्षणों और शारीरिक चेष्टाओं को लेकर बहुत अधिक विस्तार से जानकारी दी गई है, लेकिन पश्चिम में यह विधा अपेक्षाकृत नई है। करीब बीस वर्ष पहले ऑस्ट्रेलिया के एक चिंतक एलन पीज ने अपनी पहली पुस्तक बॉडी लैंग्वेज में इसके बारे में विस्तार से लिखा। यह पुस्तक विश्व के अधिकांश देशों में चर्चित हुई। इसके साथ ही अंग लक्षणों और शारीरिक चेष्टाओं पर अधिक गंभीरता से अध्ययन शुरू हुआ। इस पुस्तक में बताया गया है कि किस प्रकार किसी व्यक्ति की शारीरिक चेष्टाओं को हम नि:शब्द वार्तालाप (नॉन वर्बल कम्युनिकेशन) की तरह समझ सकते हैं। हालांकि इसमें अधिकांश पश्चिमी पद्धतियां और झूठ बोलने, आक्रामक होने, प्रणय निवेदन, अधिकार भावना जैसे मूल स्वभावों के बारे में ही दिया गया है। भारतीय सामुद्रिक शास्त्र में इससे कहीं आगे आकर वर्तमान अंग लक्षणों से सफल भविष्य कथन की पद्धति विकसित की गई है। हर जातक के चेहरे, शरीर और क्रियाकलापों में कई सूक्ष्म बातें होती हैं, जो उसे खुली किताब की तरह हमारे सामने पेश करती है, लेकिन इन्हें पकड़ पाना हर किसी के बस का नहीं होता।

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