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धूम्रपान बढ़ाता है फेफड़ों के कैंसर का खतरा

By: Team Aapkisaheli | Posted: 31 May, 2019

धूम्रपान बढ़ाता है फेफड़ों के कैंसर का खतरा
धूम्रपान बढ़ाता है फेफड़ों के कैंसर का खतरा
नई दिल्ली। विश्व स्तर पर फेफड़ों के कैंसर से दो-तिहाई मौतें होती हैं। यहां तक कि दूसरों द्वारा धूम्रपान किए जाने से पैदा हुए धुएं के संपर्क में आने से भी फेफड़ों के कैंसर का खतरा बढ़ जाता है। धूम्रपान छोडऩे से फेफड़ों के कैंसर का खतरा कम हो सकता है। धूम्रपान छोडऩे के 10 वर्षों के बाद, धूम्रपान करने वाले व्यक्ति के फेफड़ों के कैंसर का खतरा लगभग आधा हो जाता है।
इस साल विश्व तंबाकू निषेध दिवस (डब्ल्यूएनटीडी) का फोकस तंबाकू और फेफड़ों का स्वास्थ्य है। हर साल, विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएच) और वैश्विक भागीदार 31 मई को डब्ल्यूएनटीडी का निरीक्षण करते हैं और लोगों को तंबाकू के दुष्प्रभावों के बारे में जागरूक करते हैं। इस दौरान लोगों को किसी भी तरह के तंबाकू का उपयोग करने से हतोत्साहित किया जाता है।

डब्ल्यूएचओ के अनुसार, इस वर्ष यह अभियान तंबाकू से फेफड़े पर कैंसर से लेकर श्वसन संबंधी बीमारियों (सीओपीडी) के प्रभाव पर केंद्रित होगा। लोगों को फेफड़ों के कैंसर के बारे में सूचित किया जाएगा, जिसका प्राथमिक कारण तंबाकू धूम्रपान है।  

फेफड़ों के कैंसर के अलावा, तंबाकू धूम्रपान भी क्रोनिक प्रतिरोधी फुफ्फुसीय रोग (सीओपीडी) का कारण बनता है। इस बीमारी में फेफड़ों में मवाद से भरे बलगम बनात है जिससे दर्दनाक खांसी होती है और सांस लेने में काफी कठिनाई होती है।

इसी तरह, छोटे बच्चों को जो घर पर एसएचएस के संपर्क में आते हैं, उन्हें अस्थमा, निमोनिया और ब्रोंकाइटिस, कान में संक्रमण, खांसी और जुकाम के बार-बार होने वाले संक्रमण और लगातार श्वसन प्रक्रिया में निम्न स्तर का संक्रमण जैसी श्वसन संबंधी समस्याएं होती हैं।

डब्ल्यूएचओ के अनुसार, विश्व स्तर पर 1.65 लाख बच्चे 5 वर्ष की आयु से पहले दूसरों द्वारा धूम्रपान से पैदा हुए धुएं के कारण श्वसन संक्रमण के कारण मर जाते हैं। ऐसे बच्चे जो वयस्क हो जाते हैं, वे हमेशा इस तरह की समस्याओं से पीडि़त रहते हैं और इनमें  सीओपीडी विकसित होने का खतरा होता है।

डब्ल्यूएनटीडी के मौके पर टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल के उपनिदेशक और वॉयस ऑफ टोबैको विक्टिम्स (वीओटीवी) के संस्थापक डॉ. पंकज चतुर्वेदी ने कहा कि गर्भवती महिला द्वारा धूम्रपान या एसएचएस के संपर्क में आने से भू्रण में फेफड़ों की वृद्धि कम हो सकती है और इसका असर भू्रण की गतिविधियों पर हो सकता है। गर्भपात हो सकता है, समय से पहले बच्चे का जन्म हो सकता है नवजात कम जन्म का हेा सकता है और यहां तक कि अचानक शिशु मृत्यु सिंड्रोम भी पैदा हो सकता है। तंबाकू, किसी भी रूप में बहुत खतरनाक है।

ग्लोबल टीबी रिपोर्ट-2017 के अनुसार, भारत में टीबी की अनुमानित मामले  दुनिया के टीबी मामलों के लगभग एक चौथाई लगभग 28 लाख दर्ज की गई थी। स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि टीबी फेफड़े को नुकसान पहुंचाता है और फेफड़ों की कार्यक्षमता को कम करता है और ऐसी स्थिति में यदि कोई व्यक्ति धूम्रपान करता है तो यह आगे चलकर उसकी स्थिति और खराब हो सकती है।

विशेषज्ञों का कहना है कि तंबाकू का धुआं इनडोर प्रदूषण का बहुत खतरनाक रूप है, क्योंकि इसमें 7000 से अधिक रसायन होते हैं, जिनमें से 69 कैंसर का कारण बनते हैं। तंबाकू का धुआं पांच घंटे तक हवा में रहता है, जो फेफड़ों के कैंसर, सीओपीडी और फेफड़ों के संक्रमण को कम करता है।

संबंध हेल्थ फाउंडेशन (एसएचएफ) के ट्रस्टी अरविंद माथुर ने बताया कि ग्लोबल एडल्ट टोबैको सर्वे 2017 के अनुसार, भारत में सभी वयस्कों में 10.7 प्रतिशत (99.5 मिलियन) वर्तमान में धूम्रपान करते हैं। इनमें 19 प्रतिशत पुरुष और 2 प्रतिशत महिला शामिल हैं। भारत में 38.7 प्रतिशत वयस्क घर पर सेकेंडहैंड स्मोक (एसएचएस) और 30.2 प्रतिशत वयस्क कार्यस्थल पर एसएचएस के संपर्क में आते हैं। सरकारी भवनों, कार्यालयों में 5.3 प्रतिशत स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं में 5.6 प्रतिशत रेस्तरों में 7.4 प्रतिशत और सार्वजनिक परिवहन में 13.3 प्रतिशत लोग सेकंडहैंड स्मोक के संपर्क में आते हैं।


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