सुहागिन के लिए मंगलसूत्र क्यो
By: Team Aapkisaheli | Posted: 17 Aug, 2013
उपर्युक्त पद्धति से नौ दिन पठन करने का एक पारायण होता है। इस तरह के अठारह पारायण होने चाहिए। यदि बीच में अशौच या मासिकधर्म आ जाए तो वह समाप्त होने पर बाकी पारायण करें। खंडित पारायण पुन: करने की आवश्यकता नहीं है। बहुतांश 18 पारायण समाçप्त के पूर्व ही विवाह निश्चित हो जाता है। विवाह निश्चित होने पर प्रतिदिन एक या तीन दिनों के पारायण करें। असंभव होने पर विवाह के पpात पारायण पूरे क रें। यदि कम दिनों में पारायण पूर्ण करने हों तो प्रतिदिन 7-1-2-7,7-3-4-7 आदि पारायण करें। तीन दिनों का पारायण एक ही समय,एक ही बैठक में तथा एक ही दिन करें। दो या तीन दिनों का पाठ करते समय सुबह, दोपहर तथा शाम में परिवर्तन किया जा सकता है। पारायण काल में सात्विक आहार लें। पारायण पूर्ण होने के बाद भगवान को अभिषेक तथा दंपति भोजन कराएं। बाद में विवाह निश्चित होने तक व्रत का पारायण करते रहें या सिर्फ 7वां अध्याय पढते रहें। विवाह होने के बाद पारायण करने की कोई आवश्यकता नहीं है। यदि पति-पत्नी में वाद विवाद होकर बात तलाक तक पहुंच जाए तो दंपति में से एक या दोनों उपर्युक्त पारायण करें। इससे उनका पुनर्मिलन अवश्य हो जाएगा। ऎसे समय संकल्प में साध्य बदल जाएगा। इस अनुष्ठान में पारायण वाचन हमेशा मध्यम स्वर में करें। मन ही मन इसका वाचन न करें।